Friday, September 1, 2017

90 साल फाजिल्का के सिनेमा का सफर - A 90 Years Journey of Fazilka Cinema

फाजिल्का सिनेमा के सुनहरे इतिहास में आज जुड़ेगा नया अध्याय 
1st September 2017

फाजिल्का के सिनेमा का इतिहास भी देश के सिनेमा के साथ साथ आगे बढ़ा है। डॉक्टर भूपिंदर सिंह बताते है की सन 1921 में जब सुलेमनकी हैड सतलुज दरिया पर बन रहा था तो चलता फिरता सिनेमा फाजिल्का में आना शुरू हो गया था। पाकिस्तान की तरफ से चाननवाला गांव तक लोग पैदल या बैल गाडिय़ों पर बैठ कर आते थे और वहां से ब्रॉड गॉज ट्रेन पकड़ कर सिनेमा देखने फाजिल्का आते थे। 1931 में भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' आयी और यह चलते सिनेमा का प्रचलन और बढ़ा। बिजली न होने के कारण यह सिनेमा रात को खुले में जनरेटर चला कर फिल्म दिखाया करते थे। डॉ भूपिंदर बताते है की, फाजिल्का के जगन नाथ ग्रोवर ने 'रीगल टॉकीज' के नाम से शुरू किया गया था जो काफी देर तक चला। जहां पुराना राधा स्वामी सत्संग घर होता था, और गौशला के पीछे खाली मैदान में फिल्में दिखाई जाती थी। टिकट का रेट पांच आना, दस आना होता था और प्रतिस्पर्धा इतनी थी की एक टिकट पर तीन फिल्में दिखाई जाती थी। चलते फिरते सिनेमा का दौर राजा सिनेमा के बनने के बाद भी रहा, वह बताते है की उन्होंने एक टिकट लेकर दिलीप कुमार की 'जुगनू', 'मदारी' और 'थीफ आफ बगदाद' फिल्मे चलते सिनेमा में देखी। विजय टॉकी भी इस दौर में काफी मशहूर था। यह कहना गलत नहीं होगा की रीगल और विजय टाल्कीस फाजिल्का के पहले सिनेमा थे जो करीब राजा सिनेमा के बनने से 30 साल पहले से प्रचलित थे ।
आजादी के बाद की बात की जाये तो पहला सिनेमा फाजिल्का में जो आया वह 'सावनसुक्खा' परिवार की बदौलत 'राजा सिनेमा' के रूप में आया। 24 जुलाई 1953 में इसकी शुरुआत फिल्म 'अनारकली' की स्क्रीनिंग से हुई। जो फिल्म देखने आता था उसे लड्डू दिये जाते थे। प्रदीप कुमार, बीना रॉय, नूर जहां जैसे सितारों से जगमगाती फिल्म ने कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। इस फिल्म के गीत 'यह जिंदगी उसी के है, जो इसी का हो गया' ने हिंदी संगीत को नयी कामयाबी की और पहुंचाया, उस समय के कुछ फाजिल्का वासी अपनी यादें तजा करते हुए बताते है , की अक्सर वह टिकट लेकर राजा सिनेमा में सिर्फ गाने के समय सिनेमा जाते थे। 1954 की बात है जब वैजयन्ती माला की 'नागिन' फिल्म राजा सिनेमा में लगी तो बीन की आवाज सुन कर असली सांप हाल के अंदर आ गया था । 1971 की भारत-पाक की जंग हुई तो जो पाकिस्तानी सिपाही पकड़े, उन्होंने माना (आर्मी के रिकॉर्ड में दर्ज है के अनुसार) जब जंग का ऐलान हुआ तब वह चोरी छिपे बॉर्डर पार करके राजा सिनेमा में फिल्म देखने आये थे ।
सिनेमा के 60 व 70 के दशक में सिनेमा का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा। 1971 की भारत पाकिस्तान जंग के बाद फाजिल्का ने फिर से तरक्की की राह पकड़ी। फाजिल्का की आबादी के लिहाज से और सिनेमा की जरूरत महसूस हुई, फिर फाजिल्का के जमींदार सेठ राजा राम नागपाल ने अपने इकलौते बेटे के नाम पर 'संजीव सिनेमा' खोला। इसमें पहली फिल्म अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, ऋषि कपूर की भारी भरकम स्टारकास्ट वाली मनमोहन देसाई द्वारा निर्देशित फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' से सिनेमा की शुरुआत 23  दिसंबर 1977 को हुई। अब फाजिल्का में दो सिनेमा हो गए थे, और लोगो ने राजा और संजीव सिनेमा को पुराना सिनेमा और नया सिनेमा के नए नाम भी दे दिए। 80 के दशक तक पाकिस्तान में बनी फिल्में भी फाजिल्का में लगती थी, मुझे याद है जब 1956 में बनी पाकिस्तान की ब्लैक एंड वाइट फिल्म 'दुल्ला भट्टी', 18 साल बाद 1983 में  राजा सिनेमा में लगी थी, उसका एक गीत  मुनावर सुल्ताना का गया हुआ 'वास्ता इी रब्ब दा तू जाई वे कबूतरा, चि_ी मेरे ढोल नूं पहुंचाई वे कबूतरा' आज भी बहुत मशहूर है। इस गीत को सुनने के लिए मुझे मेरे पिता जी स्पेशल गीत के समय राजा सिनेमा में लेकर गए। तब मेरी उम्र करीब छह साल थी। 1957 में आई पंजाबी पाकिस्तानी फिल्म 'यकके वाली' ने भी राजा सिनेमा में धूम मचा दी थी । मनोरंजन का साधन सिनेमा ही रहे, और साल में दो-तीन बार स्कूलों से भी बच्चो को फिल्म दिखाने लेकर जाते थे, जो प्रचलन अब शायद बंद या कम हो गया है ।
सिनेमा देखना ही नहीं बल्कि फाजिल्का की प्रतिभाओं ने सिनेमा का निर्माण भी किया। इससे भी बढक़र फिल्म में अभिनय कर भी योगदान दिया। सिनेमा में योगदान की बात की जाये तो मुख्य तौर पर दो लोगों का नाम सामने आता है, 1949 में फाजिल्का की बेटी पदमश्री पुष्प हंस की पहली फिल्म 'अपना देश' आई जिसका निर्देशन उस समय के जाने मानेे निर्देशक वी शांताराम ने किया। इससे पहले उन्होंने 1948 में पंजाबी की हिट फिल्म 'चमन' में 'चन्न किथा गुजारी ए रात वे', गाकर अपनी आवाज का लोहा मनवाया। यह वह दौर था जब शायद लड़कियों को घर से निकलने भी नहीं दिया जाता था पर, फाजिल्का क बेटियां अभिनय और गायकी में अपना सिक्का दुनिया में जमा रही थी ।
इसके बाद 1974 में फाजिल्का के मशहूर उर्दू शायर कुँवर मोहिंदर सिंह बेदी, ने पंजाबी फिल्म 'मन जीते जग जीत' को बतौर निर्माता बनाया । सुनील दत्त की मुख्या भूमिका में यह फिल्म सुपर हिट रही ।
टीवी कुछ एक घरो में था तब, तो फाजिल्का के लोगो को दुनिया को देखने और मायावी नगरी की बातें बॉर्डर तक पहुंचने का सिनेमा ही एक मात्र जरिया रहे। लेकिन 80 के दशक में जब टेलीविजन पर लाइसेंस सिस्टम खतम किया गया और उसके बाद प्रधान मंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में, टेलीविजन घर घर हो गया, उसके बाद वी.सी. आर का दौर आया और 90 तक टीवी ने फाजिल्का में अपनी पकड़ बना ली। फाजिल्का के सिनेमा ने यह सारे दौर देखे 90 और सन 2000 के दशक में सिनेमा को नयी टेक्नोलॉजी की खूब मार पड़ी, जो सिनेमा दर्शको से खचाखच भरे रहते थे वहां से भीड़ नदारद हो गई। एंटरटेनमेंट टैक्स की मार ने सिंगल स्क्रीन सिनेमा की कमर तोड़ दी। लेकिन फाजिल्का के सिनेमा ने अपना वर्चस्व नहीं खोया और अपनी होंद की लड़ाई लड़ता रहा।
पुरानी सदी का अंत और नयी सदी सिनेमा के लिए खुशखबरी लेकर आई, ऑनलाइन टिकट, यूएफओ टेक्नोलॉजी , डिजिटल डॉल्बी के दौर ने डिजिटल सिनेमा की और रुख किया,  सरकार ने  लगने वाले टैक्स कम करके सिनेमा को अपने पैरों पर फिर खड़ा होने का मौका दिया। भीड़ वापिस सिनेमा की तरफ आनी शुरू हुई तब 1994 में हिंदी सिनेमा की दो फिल्म 'दिलवाले दुल्हनियां ले  जायेंगे' और 'हम आपके है कौन' ने सफलता के नए आयाम स्थापित किये। फाजिल्का में यह दोनों फिल्में 7  से 10 हफ्ते से अधिक चली और कई रिकॉर्ड बनाये। करीब 2009-2010  के आस पास आते आते दोनों सिनेमा डिजिटल साउंड के साथ आगे बढ़ते गए, यूएफओ टेक्नोलॉजी के कारण जो फिल्म हिट होने के करीब 1-2 महीने बाद फाजिल्का के सिनेमाघरों में आती थी, पहले हफ्ते ही रिलीज होने लग गई। यादें ताजा करते हुए संजीव सिनेमा के प्रोजेक्टर ऑपरेटर श्री घनश्याम शर्मा जिनकी उम्र अब करीब 73 साल है, वह संजीव सिनेमा से पिछले 40 सालों से जुड़े है, बताते है की उन्होंने सिनेमा से जुड़े वह सारे उतार चढ़ाव देखे है, 'मामला गड़बड़ है', 'नूरी' और कई ऐसी सुपर हिट मूवी आई जिससे सिनेमा में दर्शको की भीड़ इस कदर होती थी कि कुछ लोग उनके साथ प्रोजेक्टर रूम में फिल्म देखते थे। पहली फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' चार हफ्ते चली थी। हर हिट फिल्म को देखने फाजिल्का के सभी परिवार आते थे। गौरतलब है कि रील वाले सिनेमा से लेकर अब राजा व संजीव सिनेमा पूरे डिजिटल दौर में पहुंच चुके है, घनश्याम जी संजीव सिनेमा में आज भी संचालन कर रहे है।
1 सितम्बर 2017 को फाजिल्का के सिनेमा इतिहास के सुनहरी दौर में गिल्होत्रा परिवार एम.आर कार्निवाल सिनेमा जोडक़र एक और अध्याय जोडऩे जा रहा है। दो स्क्रीन वाले, डिजिटल डॉल्बी साउंड व् यूएफओ तकनीक से फाजिल्का का तीसरा और सबसे बड़ा सिनेमा शुरू होने जा रहा है। नवीनतम तकनीक से लेस सिनेमा में अजय देवगन की नयी फिल्म 'बादशाहो' से शुरुआत की जा रही है । गिल्होत्रा परिवार और फाजिल्का को सिनेमा के इस स्वर्णिम दौर में जिसने 90 सालों का सफर तय किया है, दिल से बधाई।

नवदीप असीजा, चंडीगढ़/फाजिल्का
Story Published in Sarhad Kesri, Fazilka

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